शैतान बंदर

 एक जगल के पास कुछ लोग काम में जुटे हुए थे उन्हें एक मंदिर ओर धर्मशाला बनाने का काम सौंपा गया था एक दिन दोपहर में धूप बहुत तेज थी गर्मी में लोगों के लिए काम करना मुश्किल हो रहा था। एक बढ़ई बोला मुझसे तो अब गर्मी बर्दाश्त नहीं हो रही हैं इसलिए मैं भोजन करने के लिए गांव जा रहा हूं भोजन करने के बाद मैं थोड़ी देर आराम करूंगा। तुम लोग मेरे साथ चलना चाहो तो आ जाओ।  काम करते हुए तो सभी बढ़ई थक चुके थे इसलिए उन सभी ने अपने साथी की बात मान ली। एक बढ़ई ने कहा भूख तो मुझे भी बहुत लगी है लेकिन दो मिनट जरा रुको। इस लकड़े को चीरने में मुझे बहुत समय लगा है मुझे इसकी कटी हुई जगह में एक लकड़ी फसा लेने दो जिससे यह दोबारा बंद न हो। 

यह कहते हुए उस बढ़ई ने लकड़े के चिरे हुए सिरों के बीच पर लकड़ी का एक छोटा टुकड़ा फसा दिया। फिर सभी बढ़ई भोजन करने के लिए गांव चले गए। थोड़ी ही देर में बंदरों का एक झुंड उसी जगह पर आ पहुंचा जहां बढ़ई अपने औजार आदि छोड़ गए थे वहां पहुंचते ही बंदरों ने खुराफात शुरू कर दी। कोई बंदर वहां रखे लकड़ी पर उछलते लगा तो कुछ लकड़ियों के छोटे छोटे टुकड़े उठाकर खेलने लगे। 

एक बंदर ने वहां रखा औजारों का बोरा पलट दिया जिससे सारे औजार जमीन पर बिखर गए एक बंदर कुल्हाडा उठाकर एक लकड़े पर मारने लगा। उनमें सबसे छोटा बंदर बहुत ही शैतान था उसे हर चीज के बारे मे जानने की बड़ी उत्सुकता रहती थीं। उसकी निगाह उस लकड़े पर पड़ी जो एक सिरे से चिरा हुआ था और उसके चिरे हुए भाग में एक लकड़ी फंसी हुई थी वह उस लकड़े के पास जा पहुंचा और बड़े ध्यान से उसे देखने लगा। वह समझ नहीं पा रहा था कि लकड़े के चिरे हुए सिरे में वह लकड़ी किस तरह फस गई है एक हाथ से उसने उस लकड़ी को पकड़कर हिलाया लेकिन वह जरा भी नहीं हिली। अब बंदर ने दूसरा हाथ उस लकड़ी पर जमाकर उसे बाहर खींचा लेकिन इस बार भी वह टस से मस नहीं हुई। इस पर वह बंदर चिढ गया। उसने सोचा में इस लकड़ी को बाहर निकालकर ही रहूंगा। वह लकड़े के कटे हुए सिरे के दोनों और अपनी टांगे करके बैठ गया और उस लकड़ी को बाहर खींचने लगा लेकिन उसे यह पता नहीं था कि उसकी पुंछ लकड़ी के दोनों चिरे हुए हिस्सों के बीच ही लटकी हुई है 

इस और बंदर का बिल्कुल ध्यान नहीं था उसने दोनों हाथों से उस लकड़ी को पकड़कर पूरी ताकत से बाहर खींचा। एक झटके के साथ लकड़ी बाहर आ गई और दोनों चिरे हुए हिस्से चिपक गए इस तरह बंदर की पुंछ उन चिपके हुए हिस्सों के बीच फस गई। बंदर दर्द से चीख पड़ा उसकी आवाज सुनकर जुड़ के सारे बंदर वहां आ पहुंचे। बंदर की ऐसी हालत देखकर वे चौक गए थे समझ नहीं पा रहे थे कि उस बंदर की पुंछ लकड़े के दोनों सिरों के बीच कैसे फस गई। उन्होंने बंदर को पकड़कर उसे खींचना शुरू कर दिया। लेकिन पुंछ बाहर नहीं आई। तब एक बूढ़ा बंदर बोला हिम्मत मत हारो पूरी ताकत लगाकर इसे खींचों। तब इसकी पुंछ जरूर बाहर निकल जाएगी। इस बार बंदरों ने ऐसा ही किया। लेकिन इस बार बंदर की पुंछ बाहर आने की बजाए टूट गई। अपनी शैतानी की वजह से उस बंदर को अपनी पुंछ गवानी पड़ी। 

शिक्षा= वह काम कभी मत करो जो तुम जानते ही नहीं हो।

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