चुहिया बनी दुल्हन

 बहुत समय पहले गंगा नदी के तट पर एक साधु रहते थे एक सुबह जब नदी के किनारे ध्यान लगाए बैठे हुए थे तभी एक बाज उड़ता हुआ वहां आया। वह बाज साधु के सिर के ऊपर से निकल रहा था कि तभी उसकी पकड़ ढीली हो गई और उसके पंजों में कैद चुहिया साधु की गोद में जा गिरी। साधु को चुहिया पर बड़ी दया आई न जाने उनके मन में क्या आया कि उन्होंने उस चुहिया को उठाकर एक मंत्र पढ़ना शुरू कर दिया चुहिया अगले ही पल एक बच्ची में बदल गई साधु उस बच्ची को अपनी पत्नी के पास ले जाकर बोले प्रिय हमारे कोई संतान नहीं है मैं जानता हूं कि तुम्हारे मन में संतानसुख प्राप्त करने की तीव्र इच्छा है इस बच्ची को अपना लो आज से यही हमारी संतान है साधु की पत्नी उस बच्ची को पाकर बड़ी खुश हुई उसने उस बच्ची को अपनी गोद में ले लिया और चूमने लगी। वह बड़े प्रेम से उस बच्ची का पालन पोषण करने लगी। 

कई साल ऐसे ही गुजर गए वह छोटी बच्ची अब सुंदर लड़की बन गई थी साधु और उनकी पत्नी अपनी पुत्री के लिए वर खोज के करने लगे। साधु अपनी प्यारी पुत्री का हाथ किसी साधारण व्यक्ति के हाथ में नहीं देना चाहते थे इसलिए उन्होंने पूजा करके सूर्यदेव का आहवान किया अगले ही पल सूर्यदेव वहां प्रकट हो गए साधु ने अपनी बेटी से कहा बेटी ये सूर्यदेव है क्या तुम इनसे विवाह करोगी   नहीं पिताजी लड़की ने उतर दिया यह बहुत गर्म हे इनके साथ रहना चाहिए तो मेरे लिए मुश्किल हो जाएगा। लड़की की बात सुनकर सूर्यदेव मुस्कुराए और अंतर्धान हो गए। अब साधु ने वरुणदेव का आहवान किया वे भी वहां प्रकट हो गए जब साधु ने वरुणदेव से विवाह करने के लिए अपनी बेटी की राय पूछी तो वह बोली में इनसे भी विवाह नहीं करूंगी ये बहुत ही सांवले और ठंडे हैं। उस लड़की की बात सुनकर वरुणदेव हंसे और उन्होंने साधु को इस कार्य के लिए पवनदेव को बुलाने की सलाह दी क्योंकि पवनदेव बहुत ही शक्तिशाली माने जाते हैं और बड़ी से बड़ी वस्तु को उठाकर ले जा सकते हैं साधु ने पवनदेव का आहवान किया। पवनदेव के प्रकट होने पर जब साधु ने अपनी बेटी का मत पूछा तो वह बोलो पिताजी मैं इनसे विवाह नहीं करना चाहती ये तो हमेशा चलते रहते हैं। स्थिर तो ये कभी रहते ही नहीं हैं आप मेरे लिए किसी अन्य वर को ढूंढिए। पवनदेव बोले संत शिरोमणि आप पर्वतराज के पास जाइए वे बहुत ही शक्तिशाली हैं और स्थिर भी रहते हैं उनकी शक्ति की तो कोई पार नहीं हे यहां तक कि वे मुझे भी बलपूर्वक रोक देते हैं। आपकी बेटो को निश्चित ही वे अपने पति के रूप मे पसंद आयेगे। साधु को भी पवनदेव की सलाह अच्छी लगी। उन्हें लगा कि पर्वतराज ही उनकी बेटी के लिए सही वर है वे तुरंत अपनी पुत्री को साथ लेकर पर्वतराज की ओर चल पड़े। पर्वतराज तो स्थिर थे इसलिए उन्हें तो वहां बुलाया नहीं जा सकता था। लम्बी दूरी की यात्रा करके वे पर्वतराज के पास जा पहुंचे। लेकिन साधु की उम्मीदों पर उस समय पानी फिर गया जब उनकी बेटी पर्वतराज को देखते ही बोली पिताजी मैं इनसे विवाह नहीं करना चाहती। ये बहुत ही कठोर हैं इनको तो छूना ही मुश्किल है। तब साधु ने पर्वतराज से पूछा पर्वतराज क्या मुझे बताएंगे कि आपसे भी शक्तिशाली कौन है। हा पर्वतराज ने उतर दिया चूहा मुझसे भी शक्तिशाली है आप चूहे के पास जाइए। वहीं आपकी इच्छा की पूर्ति होगी चूहा उतना ताकतवर है कि वह मेरी मजबूत शिलाओं में भी अपना बिल बना लेता है। पर्वतराज की बात सुनते ही साधु ने तुरंत चूहे को बुलाने भेजा चूहा तत्काल ही वहां आ गया। चूहे को देखते ही साधु की बेटी संकोच में पड़ गई और अपने पिता से बोली पिताजी अब आपको परेशान होने की कोई जरूरत नहीं है मैने इस चूहे को अपने वर के रूप में चुन लिया है। लेकिन इसके लिए आपको मुझे चुहिया बनाना पड़ेगा। अपनी पुत्री की बात सुनकर साधु मुस्कुराए और उन्होंने अपने मंत्र के प्रभाव से उस लड़की को चुहिया बना दिया। फिर चुहिया का उस चूहे से विवाह कर दिया साधु चाहकर भी चुहिया की किस्मत नहीं बदल सके। 

शिक्षा= किसी की पहचान नहीं बदली जा सकती।


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