शेर और सियार

 एक घने जगल में एक लंबी गुफा में शेर दंपति रहती थे एक दिन शेरनी ने दो शावकों को जन्म दिया वे शावक पूरा दिन गुफा में इधर उधर घूमते रहते थे उन शावकों को खेलते देखकर शेरनी बहुत खुश हुआ करती। उन शावक को कुछ खाने को नहीं मिलता था थोड़ा सा खाने को मिलता था उनका पेट पूरा भर नहीं सकता। वे जितना खाते उतनी ही उन्हें ओर भूख लगती एक दिन शेर भोजन की तलाश में सुबह ही गुफा से निकल गया दोपहर में जब वह वापिस लौटा तो खाली हाथ था जब शेरनी ने उससे भोजन के विषय में पूछा तो शेर बोला आज तो कोई शिकार मिला ही नहीं। शेर की बात सुनकर शेरनी बोली हमारे बच्चे बहुत भूखे हैं तुम किसी भी तरह उनके लिए भोजन लेकर आओ। शेरनी की बात सुनकर शेर फिर भोजन लाने के लिए चल पड़ा। इस बार गुफा से थोड़ी ही दूर जाने पर उसे दो खरगोस मिले। शेर ने उन्हें मार डाला और वापिस लौट पड़ा थोड़ी ही दूर पर उसे एक शिशु सियार मिल गया। शेर ने उसे जीवित ही अपने पंजी में दबाया और गुफा की ओर चल पड़ा गुफा में पहुंचकर वह अपने शेरनी से बोला ये तो खरगोश बच्चों को खिला दो ओर इस सियार को हम लोग बांटकर खा लेना है उस शिशु सियार को देखकर शेरनी को बहुत दया आई। छोटे छोटे बच्चे को देखकर उसके पास भी एक मां का ह्रदय था। वह शेर से बोली में इस शिशु को नहीं मारूंगी। इसकी उम्र भी मेरे बच्चों जितनी ही है। मेरे को लगता हे कि यह अपनी मां से बिछुड़ गया हे में अपने बच्चों के साथ इसका भी पालन पोषण करुंगी। शेर ने शेरनी की बात मान ली। सियार भी शेरों के साथ रहने लगा। शेर जो कुछ भी शिकार करके लाता वह शेरनी अपने बच्चों के साथ सियार को भी खिलाती। वह सिंह शावकों के साथ ही खेलता कूदता। शेरनी उसे अपने बच्चों कम प्यार नहीं करती थी। वक्त के साथ तीनों बच्चे बड़े होते गए शेरनी ने अपने बच्चों को शिकार करना सिखाया। इस दौरान सियार भी उसके साथ रहता था एक दिन सिंह शावकों ने मिलकर एक हिरण का शिकार किया। अपने बच्चों के पहले शिकार पर शेरनी बहुत खुश हुई और उसने उनकी पीठ ठोकी। उसे अपने बच्चों पर खूब गर्व हो रहा र। उसने तीनों बच्चों को उस हिरण का मांस पेट भरकर खाने दिया। जब शेर वापिस आया तो शेरनी ने उसे भी अपने बच्चों के शिकार के बारे मे बताया। शेर भी बहुत खुश हुआ। धीरे धीरे शेरनी के दोनों बच्चे वयस्क शेर बन गए। सियार भी अब बड़ा हो गया। 

एक दिन दोनों युवा शेर अपने भाई सियार के साथ जगल में भोजन की तलाश में घूम रहे थे तभी एक पागल हाथी उस ओर आ रहा था दोनों युवा शेर बहुत बहादुर थे वे उस पागल हाथी से भीड़ गए। लेकिन सियार में उस पागल हाथी के सामने आने की भी हिम्मत नहीं थी। हाथी ज्यादा देर तक उन खुखर शेरों का सामना नहीं कर सका। थोड़ी ही देर में वह मैदान छोड़कर भाग निकला। इसी बीच शेरनी भी वहां पहुंची। अपने दोनों बच्चों की बहादुरी पर उसने उन्हें खूब शाबाशी दी। फिर उसका ध्यान सियार की तरफ गया जो वहां से गायब था शेरनी ने सियार को ढूंढना शुरू किया बहुत देर बाद वह एक झाड़ी के पीछे छिपा मिला। मारे भय के वह बुरी तरह कांप रहा था। तभी शेरनी के दोनों बच्चे भी वहां पहुंच गए और अपने सियार भाई को चिढ़ाने लगे। शेरनी सियार की भावनाएं समझ गई थी इसलिए उस समय उसने सियार से कुछ भी नहीं कहा। थोड़ी 

देर बाद जब दोनों युवा शेर झपकी लेने लगे तब उसने सियार से कहा बेटा बेहतर यही रहेगा कि अब तुम हम सबसे अलग रहो। कही ऐसा न हो कि किसी दिन खेल खेल में ही तुम मेरे बच्चों के हाथ से मारे जाओ तुम दर असल एक सियार हो शेर नहीं मेरे पति ने तुम्हे लावारिश पड़े पाया था और हमारी गुफा में ले आए थे मुझे तुम पर दया आ गई और तुम्हे पालने लगी। मैने तुम्हे वैसे ही पाला पोसा हे जैसे अपने बच्चों को फिर भी तुम्हारा स्वभाव वैसा ही रहा जैसे सियारो का होता है इतने दिन हमारे साथ रहने के बाद भी तुम्हारे व्यवहार मे कोई परिवर्तन नहीं आया। 

शिक्षा= किसी भी प्राणी के मूल स्वभाव में परिवर्तन नहीं सकता। 



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