साहसी ब्राह्मण

 बहुत समय पहले एक छोटे से गांव में रहता था अपनी आजीविका चलाने के लिए वह लोगों के घरों में पूजा पाठ करवाता था एक दिन उसने गांव के सबसे धनी व्यक्ति के घर में पूजा करवाई दक्षिणा के रूप में उसने ब्राह्मण को दो अच्छी नस्ल के दो स्वस्थ बछड़े दिए उन बछड़ों को पाकर ब्राह्मण बहुत खुश हुआ उन बछड़ों को वह घर ले गया और उन्हें छांव में बांध दिया वह उन बछड़ों को बड़े प्यार से देखभाल करने लगा 

एक बार ब्राह्मण के घर के पास से एक चोर गुजरा वहां दो स्वस्थ बछड़ों का बंधे देखकर वह सोचने लगा ये बछड़े तो बड़ी अच्छी नस्ल के लग रहे है में इन्हें हर हाल में चुरा लूंगा इन बछड़ों के बड़े होने पर मेरी गरीबी दूर हो जाएगी इन बछड़ों की दक्षिणा दरअसल इस ब्राह्मण को नहीं बल्कि मुझे मिली है धीरे धीरे ब्राह्मण के घर के अंदर घुसा वह जानता था कि अगर ब्राह्मण की नींद खुल गई तो वह उसकी जमकर पिटाई करेगा उसने बछड़ों की छांव में कदम रखा ही था कि धुएं की लकीर सी उठी देखते ही देखते वह लकीर एक बदसूरत और भयानक राक्षस में बदल गई उस राक्षस को देखकर चोर बहुत घबराया चोर आया तो बछड़े को चुराने लेकिन अब तो उसे लेने के देने पड़ गए थे राक्षस की शक्ल देखकर उसके छक्के छूट रहे थे तभी राक्षस जोर से गरजा सही समय पर आए हो मानव मुझे तेज भूख लगी रही थी आज में तुम्हे ही खाकर अपनी भूख मिटाऊंगा वैसे भी मुझे मनुष्य का स्वाद लिए बहुत दिन हो गए है राक्षस की बात सुनकर चोर डर के मारे थर थर कांपने लगा वह राक्षस से बोला मुझ पर दया करो मुझे मत खाओ मैं तो एक गरीब चोर हु मेरे शरीर में तुम्हे हड्डियों के अलावा कुछ नहीं मिलेगा खाना ही है तो उसे मोटे ब्राह्मण को खाओ उसका स्वाद लेकर तुम अवश्य तृप्त हो जाओगे मुझे बछड़े लेकर भाग जाने दो ठीक है राक्षस ने ब्राह्मण की बात मान ली थी लेकिन तुम यही इंतजार करो पहले में जाकर ब्राह्मण को खाऊंगा कही ऐसा न हो कि बछड़े शोरगुल करने लगे और इस बीच इन बछड़ों के शोरगुल से उस ब्रह्मण की नींद खुल जाए पहले मुझे बछड़ों को ले जाने दो चोर ने विरोध किया अगर वह ब्राह्मण उठ बैठा तो वह मुझे बहुत पिटेगा पहले में बछड़े ले जाऊंगा तुम तो इतने बड़े और शक्तिशाली हो तुम भला उस ब्राह्मण से इतना क्यों डर रहे हो चोर और राक्षस दोनों ही अपनी अपनी बात पर अड़े हुए थे इसलिए दोनों में बहस शुरू हो गई आंगन में तेज आवाज सुनकर ब्राह्मण की नींद खुल गई जब उसने खिड़की खोलकर बाहर देखा तो राक्षस और चोर को बाहर लड़ते हुए पाया उनकी बातचीत से वह तुरंत सब कुछ समझ गया वह ईश्वर से अपनी प्राण रक्षा के लिए प्रार्थना करने लगा 

थोड़ी देर बाद ब्राह्मण ने हिम्मत करके अपनी हथेली में पवित्र पानी लिया और उसे मंत्र पढ़कर राक्षस के ऊपर फेंक दिया। अगले ही पल वह राक्षस गायब हो गया फिर ब्राह्मण एक मोटा डंडा हाथ में लेकर उस चोर के पीछे दौड़ा और ब्रह्मण ने तीन चार डंडे मारा बेचारा चोर जोर जोर से चिल्लाते हुए वहां से भाग गया ब्रह्मण उसके पीछे दौड़ा और चोर बड़ी मुश्किल से अपनी जान बचा पाई इस प्रकार ब्रह्मण ने हिम्मत दिखाकर अपनी साहसी दिखाई और अपने बछड़ों को भी चोर से बचा लिया 

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