चींटी और टिड्डा
गर्मी का मौसम था तेज धूप के कारण भयंकर गर्मी पड़ रही थी सभी पशु पक्षी गर्मी के कारण बेचैन थे दोपहर के समय सभी अपने अपने घरों में आराम कर रहे थे लेकिन ऐसे समय में भी चींटियां आराम नहीं कर रही थी वे खाने की सामग्री अपने घर में इक्कठा करने में लगी थी शायद ये भविष्य के लिए संग्रह कर रही थी वहीं पर एक टिड्डा भी आराम से लेटा हुआ था और गाना गा रहा था वह कुछ भी काम नहीं करता था सारे दिन इधर उधर घूमता रहता था जब उसने चींटियों को देखा तो हंसने लगा हंसते हुए वह चींटियों से बोला अरे लालची चींटियों क्यों इस गर्मी में मर रही हो थोड़ा सा आराम कर लिया करो तुम सब कितनी लालची हो मुझे देखो में खा पीकर मस्त हु जिंदगी के मजे ले रहा हूं चींटियां चुप रही लेकिन उनमें से एक चींटी बोली टिड्डे भाई हम लोग बरसात के दिनों के लिए खाने का सामान इकठ्ठा कर रहे हैं तुम्हे भी भविष्य के लिए कुछ इकठ्ठा कर लेना चाहिए टिड्डा जोर से हंसा और बोला कल जब होगी तब देखा जाएगा अभी से क्यों मरु उसे चींटियों की बात समझ में नहीं आई वह तो हंसता रहा और फिर गीत गाने लगा
गर्मी के बाद बरसात का मौसम भी आ गया आसमान में काले काले बादल घिरे आए देखते ही देखते पानी बरसने लगा धरती पर पानी ही पानी दिखाई देने लगा ऐसे समय में चींटियां जमीन के अंदर चली गई उनके पास तो खाने का काफी सामान था वे आराम से समय बिताने लगी इधर टिड्डे के लिए भोजन जुटाना मुश्किल हो गया वह भूखों मरने लगा उसे चींटियों की याद आई उसने उनका दरवाजा खटखटाया उसने कहा चींटी बहन थोड़ा सा कुछ खाने के लिए दे दो में बहुत भूखा हु आपकी बड़ी कृपा होगी
शिक्षा=परिश्रम ही सफलता की कुंजी हे
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